आज की शाम, कल की संक्रांति
तोड़ने वाली है, मेरी भ्रांति
जो मैं समय रहते न समझा जग को
अब न जाने क्या समझाना मुझे, सब को
प्रेम ही जीवन का आधार हैं
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बदलने को तो इन आंखों के मंजर कम नहीं बदले
तुम्हारी याद के मौसम हमारे गम नहीं बदले
तुम अगले जन्म में हम से मिलोगी तब तो मानोगी
जमाने और सदी की इस मौसम में हम नहीं बदले