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सोमवार, 20 अगस्त 2018

कविता

ऐ हवा जरा मंद-मंद लहरा
अभी जख्म ताजा है
ऐ फूल जरा कम महक
खुश्बू लेने वाला नासमझ है
ऐ संगीत जरा बेसुरी हो जा
वाहवाही के लिए कौन मोहताज है
ऐ सुबह की ओस टहर जा
तुझे देखने के लिए सपना तोड़ना पड़ता है.

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